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“इंसान”

"गमेदिल"
"गमेदिल"
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खोज रहा हूँ ठिकानों में,
पत्थर के बने मकानों मे,
“खुली हुई” दुकानों में,
अपनों में अनजानों में,
बिखरे से अरमानों में,
सिसकते हुए तरानों में,
गुलशन में वीरानों में,
पतझड़ में पैमानों में,
प्रेमातुर परवानों में,
महोब्बत में दीवानों में,
वादों में बहानों में,
आंसू में मुस्कानों में,
खुशियों के खजानों में,
ग़मों के दहानों में,
बदलते फसानों में,
आते मेहमानों में,
सच्चे बेईमानों में,
बूढ़े सयानों में,
पर “इंसान” ना मिला “इंसानों” में…………………………..

Manish Singh “गमेदिल”

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